10 साल में खामोश हो गई मैनपुरी की 52 धान मील
एक वक़्त था जब कदम-कदम पर स्थापित धान मिलें न केवल धान उत्पादन की कहानी कहतीं थीं, बल्कि उद्योग क्षेत्र में मैनपुरी की मजबूत स्थिति का अहसास भी कराती थीं। मगर सरकारी तंत्र की मनमानी और अनदेखी ने मैनपुरी के इस परम्परागत उद्योग को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। पिछले 10 साल में 52 धान मिलें खामोश हो गईं। आंखें अब भी नहीं खुली हैं।
सरकारी धान खरीद की ही बात करें तो वर्ष 2010-11 में 5 हजार टन धान खरीदने का लक्ष्य था। अब तक 1918 टन ही खरीदा जा सका है। खाद्य निगम को 3500 टन धान खरीदना था। उसने अभी तक 1584 टन ही खरीदा है, जबकि पीसीएफ को 1 हजार टन धान खरीदने का लक्ष्य मिला था उसने मात्र 143 टन ही धान की खरीद की है। यूपीएसएस को 250 टन का लक्ष्य मिला था उसने 90 टन तथा यूपी स्टेट एग्रो को 250 टन धान खरीदना था उसने 125 टन धान की खरीद की है। केन्द्र सरकार द्वारा समर्थन मूल्य का लाभ मात्र 325 किसानों को ही मिला है। मंडी में इस समय सूखा धान 775 से 800 रुपये कुंतल बिक रहा है। जबकि सरकार ने 1 हजार रुपये कुंतल समर्थन मूल्य घोषित किया है जो कागजों पर सिमट कर रह गया है। किसान मजबूर होकर मंडी में अपना धान समर्थन मूल्य से 200 से 250 रुपये कम में बेच रहा है।
जिले में चावल की बात हो और किसानों के साथ व्यापारी को न जोड़ा जाये तो अन्याय ही होगा। जिस तरह से किसानों को समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल रहा है उसी तरह से धान मिल मालिकों को सरकार से मदद न मिलने की वजह से पूरा धान उद्योग ही चौपट हो रहा है। 66 धान मिलों में से इस समय 52 धान मिलें बंद हैं। धान की नगरी को लगी सरकार नजर से किसान मजदूर और व्यापारी तीनों परेशान हैं।
मानकों के अनुरूप नहीं है धान
मैनपुरी: जिला खाद्य एवं विपणन अधिकारी राम सिंह का कहना है कि धान की खरीद जारी है। अभी धान मानक के अनुरूप नहीं आ रहा है। कुल आवक का 10 प्रतिशत धान ही मानक के अनुरूप आ रहा है। अब नमी अधिक होने की समस्या नहीं है अब तो क्षतिग्रस्त, संकुचित, बदरंग दानों की मात्रा अधिक है। जिसकी वजह से खरीद में समस्या आ रही है।
प्रशासन ही बेकदरी का जिम्मेदार
मैनपुरी: उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के जिलाध्यक्ष वोट सिंह यादव का कहना है कि खाद्य निगम के अधिकारी किसानों और मिल के मालिकों की बदहाली के जिम्मेदार है। वे मैनपुरी जनपद के चावल को पास ही नहीं होने देते हैं। अगर पास हो भी गया तो उसका भुगतान महीनों लटकाये रहते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार की नीति के मुताबिक कुल बनाये गये चावल का 65 प्रतिशत मिल मालिकों को सरकार को देना होगा तब वह 35 बच्चे चावल को बाजार में बेचने देगी। अब तो वह 65 प्रतिशत चावल न तो खरीद रही है नहीं 35 प्रतिशत को बाजार में बेचने दे रही है। जिसकी वजह से मिल मालिक तबाह हो गये हैं। कई लोगों के मिल नीलाम हो गये परंतु सरकार ने अपने रवैये में बदलाव नहीं किया।
( मैनपुरी से राकेश रागी की रपट )
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