Tuesday, July 15, 2014

प्रभाष जोशी जी की जयंती पर विशेष …

आज हिन्दी पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक स्व॰ श्री प्रभाष जोशी जी की ७८ वीं जयंती है ...

इस मौके पर प्रस्तुत है एक विशेष पोस्ट जिस मे मैनपुरी नगर मे हिन्दी दैनिक अखबार हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ, श्री हृदेश सिंह जी स्व॰जोशी जी से हुई अपनी एक मुलाक़ात के बारे मे बता रहे है |
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आदरणीय प्रभाष जोशी जी से मेरी मुलाक़ात भारतीय जनसंचार संस्थान में हुई थी..... तारीख थी.. 25 अगस्त 2004. उस समय इस संस्थान से हिंदी पत्रकारिता की पढाई कर रहा था..... उनके बारे में बहुत कुछ सुना था..... पढ़ा था … सो उन से मिलने को मैं बेताब था.....प्रो.आनंद प्रधान के साथ कलफ लगे सफ़ेद कुर्ते और धोती में उनका दाख़िल होना हम लोगो के लिए किसी हीरो की एंट्री से कम न था .
 
उनके क्लास में दाखिल होने और कुर्सी पर बैठने तक मैं एक तिलिस्म में कैद हो चूका था.… उनके चेहरे पर गज़ब का आत्मविश्वास था.…एक सम्मोहन था..… क्लास शुरू हुई.… पहली बात चुनाव को लेकर हुई.… देश का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ.…प्रभाष जी ने बताया कि उसमें वे शामिल रहे थे ... किसी रिश्तेदार के लिए प्रचार किया था.…प्रभाष जी उन पत्रकारों में थे जिन्होंने पहले चुनाव से लेकर 14 वी लोकसभा तक के चुनाव देखे थे.... प्रभाष जी ने 1956 के आसपास पत्रकारिता की शुरुआत की.….उनकी कलम सच की स्याही से भरी थी.…मेरी नज़र में वह खालिस हिंदुस्तानी पत्रकार हैं..... उनका कहना था कि ''असली पत्रकार वही है जो जन पांडे (एक खास विधि से जमीन में पानी के श्रोत को तलाश करने वाला शख़्स ) की तरह जमीन पर हाथ रखकर चीजों की पहचान कर सके |" 

क़र्ज़ और भुखमरी से मरने वाले किसानों को लेकर उन मे बेहद दर्द था.....मीडिया में कार्पोरेट के दखल से होने वाले नुकसानों को सबसे पहले प्रभाष जी ने ही जनता के सामने रखा था.....
प्रभाष जी मानते थे कि''पत्रकार को स्वतंत्र बुद्धि विवेक को त्यागना नहीं चाहिए ... फिर परिस्थिति चाहे कुछ भी हो , एक पत्रकार को यही जीवित रखती है |"  

प्रभाष जी ने मुझ से कहा था कि ''पत्रकार को अपना विष सम्हाल कर रखना चाहिए |" .इस पर उन्होंने दिनकर की 'शक्ति और क्षमा" शीर्षक वाली कविता की कुछ पंक्तियाँ सुनाई जो मुझे आज भी याद है ... 

"क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।"

वे नए पत्रकारों को वे सदा आगे बढाते थे.खबर से लेकर सम्पादकीय तक को किस तरह से लिखना चाहिए इस पर उनके पास अनुभवों का खजाना था.प्रभाष जी का कहना था कि''सम्पादकीय लिखते समय पाठक को माई बाप मानकर चलना चाहिए..... उनकी एक और बात जो में कभी नहीं भूल सकता कि ''इरादों में कभी खोट नहीं देखनी चाहिए.......गाँधी जी भी यही कहते थे |"

आज उनकी जयंती के अवसर पर मैं उन्हें शत शत नमन करता हूँ और यह प्रण करता हूँ कि एक पत्रकार के रूप मे आजीवन उनके सिखाये आदर्शों का पलान करता रहूँगा |

- हृदेश सिंह
मैनपुरी ब्यूरो चीफ़,
हिंदुस्तान

Saturday, May 11, 2013

आजादी की पहली जंग में खून से लाल हुई थी मैनपुरी की माटी

मैनपुरी जिले का इतिहास वीर गाथाओं से भरा पड़ा है। यहां की माटी में जन्मे लाल हमेशा गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए हर सम्भव कोशिश करते रहे। ब्रिटिश राज में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यहां की माटी वीर सपूतों के खून से लाल हुई है। पृथ्वीराज चौहान के बाद उनके वंश के वीर देशभर में बिखर गए। उन्हीं में से एक वीर देवब्रह्मा ने 1193 ई. में मैनपुरी में सर्वप्रथम चौहान वंश की स्थापना की। 1857 में जब स्वतंत्रता आंदोलन की आग धधकी तो महाराजा तेजसिंह की अगुवाई में मैनपुरी में भी क्रांति का बिगुल फूंक दिया गया। तेज सिंह वीरता से लड़े। और अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। घर के भेदी की वजह से उन्हें भले ही अंग्रेजों को खदेड़ने में सफलता न मिली हो लेकिन इसमें उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। तेजसिंह ने जीवन भर मैनपुरी की धाक पूरी दुनिया में जमाए रखी।
इतिहास गवाह है कि 10 मई 1857 को मेरठ से स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत हुई, जिसकी आग की लपटें मैनपुरी भी पहुंची। इस आंदोलन से पांच साल पहले ही महाराजा तेजसिंह को मैनपुरी की सत्ता हासिल हुई थी। उन्हें जैसे-जैसे अंग्रेजों के जुल्म की कहानी सुनने को मिली, उनकी रगों में दौड़ रहा खून अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए खौल उठा और 30 जून 1857 को अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध तेजसिंह ने आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने मैनपुरी के स्वतंत्र राज्य की घोषणा करते हुए ऐलान कर दिया। फिर क्या था राजा के ऐलान ने आग में घी का काम किया और उसी दिन तेजसिंह की अगुवाई में दर्जनों अंग्रेज अधिकारी मौत के घाट उतार दिए गए। सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेजों की सम्पत्ति पर तेजसिंह की सेना ने कब्जा कर लिया। तेजसिंह ने तत्कालीन जिलाधिकारी पावर को प्राण की भीख मांगने पर छोड़ दिया और मैनपुरी तेजसिंह की अगुवाई में क्रांतिकारियों की कर्मस्थली बन गयी। मगर स्वतंत्र राज्य अंग्रेजों को बर्दाश्त नहीं था। फलस्वरूप 27 दिसम्बर 1857 को अंग्रेजों ने मैनपुरी पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में तेजसिंह के 250 सैनिक भारत माता की चरणों में अर्पित हो गए। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में तेजसिंह की भूमिका ने क्रांतिकारियों को एक जज्बा प्रदान कर दिया। हालांकि उनके चाचा राव भवानी सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध तेजसिंह का साथ नहीं दिया। फलस्वरूप तेजसिंह अंग्रेजों से लड़ते हुए गिरफ्तार हो गए और अंग्रेजों ने उन्हें बनारस जेल भेज दिया। इसके बाद भवानी सिंह को मैनपुरी का राजा बना दिया गया। 1897 में बनारस जेल में ही तेजसिंह की मौत हो गयी।

मैनपुरी के इस क्रांतिकारी राजा को उनकी प्रजा का शत शत नमन |

Thursday, December 13, 2012

लुईस खुर्शीद का विरोध करने पर हुई आम आदमी की पिटाई

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 'आई रिलिफ कैंप' का उद्धाटन करने आईं विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद का विरोध करने पहुंचे आम आदमी पार्टी(आप) के सदस्यों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया। उन्हें कार से कुचलने की भी कोशिश की गई। हमले में 'आप' के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य विवेक यादव को गंभीर चोटें आईं हैं।

पुलिस सूत्रों ने यादव की ओर से थाने में की गई शिकायत के हवाले से बताया कि बुधवार को जिला अस्पताल में आयोजित 'आई रिलिफ कैंप' का उद्घाटन करने पहुंचीं लुईस खुर्शीद के विरोध में जैसे ही 'आप' के कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाए, खुर्शीद के इशारे पर कांग्रेसी कार्यकर्ता यादव पर टूट पड़े।'

यादव ने आरोप लगाया कि कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रकाश प्रधान ने रिवॉल्वर निकाल ली और कार से उन्हें कुचलने की कोशिश की, जिसमें उनकी और उनके साथी सुनील मिश्रा को गंभीर चोटें आईं |

ज्ञात हो कि लुईस खुर्शीद और उनके ट्रस्ट के ऊपर इस से पहले जिले के विकलांगों की सहायता के नाम पर आयोजित किए गए ऐसे ही शिविरों मे घोटाले का मामला प्रकाश मे आया था जिस को ले कर मीडिया मे भी काफी हँगामा हुआ था और एक प्रेसवार्ता मे सलमान खुर्शीद और कुछ पत्रकारो के बीच तीखी झड़प भी हो गई थी| इस मुद्दे को मद्देनजर रखते हुये 'आप' के सदस्यों ने लुईस खुर्शीद का विरोध करना चाहा था जहां विरोध के दौरान हाथापाई की नौबत आ गई !

वैसे तो कल जिला हस्पताल मे हुई इस झड़प के बारे मे आप लोगो को अखबारों के माध्यम से भी खबर पढ़ने को मिली होगी पर हम सब जानते है कि मीडिया की अपनी कुछ मजबूरीयां है पर यह भी सच है कि वो बेवफा नहीं !
इस लिए यहाँ कुछ चित्र दे रहा हूँ ... आपको खुद  अंदाज़ हो जाएगा पूरे घटनाक्रम का !





 फिलहाल जिला प्रशासन और पुलिस दोनों मामले पर नज़र बनाए हुये है और जिला के एसपी शलभ माथुर ने कहा है कि पुलिस के पास रिलिफ कैंप की विडियोग्राफी की सीडी मौजूद है, जिसकी जांच करके आरोपों की सचाई की छानबीन की जाएगी और जरूरी हुआ तो यादव की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी। 

Tuesday, November 27, 2012

मैनपुरी की तारकशी कला

मैनपुरी की तारकशी कला

मैनपुरी का देवपुरा मोहल्ला…..तंग गलियों में  हथौडी की चोट की गूंजती आवाज़…..को पकड़ते हुए जब चलना शुरू कर देंगे तो एक सूने से लकड़ी के दरवाज़े के खुलते ही एक ऐसी बेमिसाल कला का दीदार होगा जिसे तारकशी कहते है.पूरी दुनिया में तारकशी कला का मैनपुरी ही एक मात्र केंद्र है.इस कला की शुरुआत कैसे हुयी ये कहना मुश्किल है.लेकिन हिंदुस्तान में जब ब्रितानी हुकमत का सिलसिला शुरू हुआ तो तारकशी सात समन्दर पार पहुंच गयी. हिंदुस्तान से सीधे इस कला को पहचान नहीं मिली. यूरोप के देशो में इस कला को जबरदस्त लोकप्रियता हासिल हुयी.18 वी सदी में तारकशी के चाहने वाले पुरी दुनिया में हो गए.लेकिन अफ़सोस मैनपुरी में तारकशी की कला दम तोडती नजर आ रही है.कद्रदान होने के बाद भी इस कला को अपनाने वालों की कमी…..इस कला के वजूद  के लिए खतरा बन गयी है.
मैनपुरी की भोगोलिक स्थिति के चलते तारकशी मैनपुरी की पहचान बनी.मैनपुरी में शीशम के पेड़ अधिक है.शीशम की लकड़ी अधिक मजबूत होती है.इसलिए इस लकड़ी का हमारे दैनिक कार्यों में सबसे अधिक प्रयोग है.चूँकि तारकशी लकड़ी पर की जाने वाली एक तरह की नक्काशी कला है जो धातु के तारो से की जाती है.इसके लिए लकड़ी को खास तरह से तैयार किया जाता है जो एक जटिल और लम्बी प्रक्रिया है.इस कला का सबसे पहले जिक्र 1864 में अस्सिटेंट कलक्टर फेडरिक सीमन ग्राउस ने किया था.ग्राउस ने अपने कई संस्मरणों में तारकशी का जिक्र किया है.ग्राउस इस कला से बेहद मुत्तासिर थे.चौहन वंश की एक शाखा जब मैनपुरी आई तो उनके साथ एक ओझा परिवार भी आया.जो काष्ठकला में माहिर था.इस परिवार की बनायीं हुयीं कई चीजें लखनऊ मूजियम में रखीं है.
 
एक समय था जब मैनपुरी के हर घर में तारकसी की झलक मिलती थी.प्रसिद्ध इतिहासकार परसी ब्राउन ने भी इस कला का ज़िक्र किया है.आज़ादी के बाद तारकशी से बनायीं गयी शीशम की लकड़ी से निर्मित काष्ठ हाथी की प्रतिमा शिल्पकार रामस्वरूप ने राष्ट्रपति को भेंट की.मैनपुरी में रामस्वरूप ने इस कला को जीवित रखने में विशेष योगदान दिया.मोहल्ला देवपुरा में बना उनका कच्चा – पक्का मकान उनकी कला की झलक आज भी पेश करता है.  शीशम की प्लेट पर बनी तारकशी की आकृति कला कृतियाँ उपहार में देने का चलन है.रथों का प्रयोग इतिहास से मिलता है.तेजगति से चलने वाले रथ और मंझोली के पहिया तारकशी कला का शानदार उदाहरण है.

आधुनिकता और पेड़ों की अँधा धुंध कटाई से तारकशी कला का नुकसान हुआ है.भवन निर्माण में लोहे का अधिक् प्रयोग के चलते अब घरों में इस कला को जगह नहीं मिल पा रही है.सरकार को चाहिए की इस शानदार कला को जीवित रखने के लिए असरदार कदम उठाए.

Monday, June 11, 2012

'बिस्मिल' और मैनपुरी

आज जब यह देखा जाता है कि लोग अपना इतिहास भूलते जा रहे है ऐसे मे यह उम्मीद रखना कि उनको इतिहास के नायको की याद आएगी ... व्यर्थ है ... अपना मैनपुरी भी कोई अपवाद नहीं !

आज ११ जून है ... अमर शहीद पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी की ११५ वी जयंती है आज ! 

राम प्रसाद 'बिस्मिल' भारत के महान क्रान्तिकारी व अग्रणी स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं, अपितु उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। शुक्रवार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी विक्रमी संवत् १९५४ को उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद जी को ३० वर्ष की आयु में सोमवार पौष कृष्ण एकादशी विक्रमी संवत् १९८४ को बेरहम ब्रिटिश सरकार ने गोरखपुर जेल में फाँसी दे दी। 'बिस्मिल' उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रक्खा और ३० वर्ष की आयु में फाँसी चढ़ गये। ग्यारह वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं जिनमें से ग्यारह उनके जीवन काल में प्रकाशित भी हुईं। ब्रिटिश सरकार ने उन सभी पुस्तकों को जब्त कर लिया ।

आज के युवा जो बिस्मिल जी को ही शायद नहीं जानते होंगे उनको तो यह अंदाज़ भी नहीं होगा कि बिस्मिल जी का मैनपुरी से कितना गहरा नाता रहा है ! आप स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान हुये 'मैनपुरी षडयन्त्र' के नायको मे से एक थे और इस के साथ साथ मैनपुरी जिले के कोसमा मे भी कुछ दिन अपनी सगी बहन के घर रहे थे ... यह बात और है कि उनके प्रवास के दौरान उनकी बहन भी उन्हें पहचान नहीं पायी थी ... तो फिर भला पुलिस कैसे पहचानती !?

 'मैनपुरी षडयन्त्र'

अंग्रेजों के अत्याचारों एवं घोर दमन नीति के कारण भारत वर्ष में भीषण असंतोष के बादल मँडराने लगे थे। नौजवानों का रक्त विदेशी सत्ता के विरुद्ध खौलने लगा था। उनमें विदेशी शासन के उन्मूलन का जोश उमड़ रहा था। उन दिनों के ब्रिटिश भारत (हिन्दुस्तान) का एकमात्र संयुक्त प्रान्त (संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध) भी, जिसे १९४७ के बाद उत्तर प्रदेश नाम दे दिया गया, इस जोश में किसी से पीछे नहीं रहा। उत्तर प्रदेश में क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रारम्भ बनारस में रहने वाले कुछ बंगाली क्रान्तिकारियों ने अवश्य किया था किन्तु सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी व लेखक मन्मथनाथ गुप्त के अनुसार मैनपुरी काण्ड स्वत:स्फूर्त आन्दोलन था जिसकी प्रेरणा से उत्तर प्रदेश में बहुत से किशोर देशभक्त इस प्रकार की सशस्त्र क्रान्ति की ओर आकर्षित हुए। शाहजहाँपुर, आगरा, मैनपुरी, इटावा एवम् एटा आदि उत्तर प्रदेश के अनेक जिले इसकी आग से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। सन् १९१८ के मैनपुरी षडयन्त्र के रूप में इसका विस्फोट हुआ। 

परतन्त्र भारत में स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिये उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी में सन् १९१५-१६ में एक क्रान्तिकारी संस्था की स्थापना हुई थी जिसका प्रमुख केन्द्र मैनपुरी ही रहा। मुकुन्दी लाल, दम्मीलाल, करोरीलाल गुप्ता, सिद्ध गोपाल चतुर्वेदी, गोपीनाथ, प्रभाकर पाण्डे, चन्द्रधर जौहरी और शिव किशन आदि ने औरैया जिला इटावा निवासी पण्डित गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने के लिये उनकी संस्था शिवाजी समिति से हाथ मिलाया और एक नयी संस्था मातृवेदी की स्थापना की। इस संस्था के छिप कर कार्य करने की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को लग गयी और प्रमुख नेताओं को पकड़कर उनके विरुद्ध मैनपुरी में मुकदमा चला। इसे ही बाद में अंग्रेजों ने मैनपुरी षडयन्त्र कहा। इन क्रान्तिकारियों को अलग-अलग समय के लिये कारावास की सजा हुई।
मैनपुरी षडयन्त्र की विशेषता यह थी कि इसकी योजना प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश के निवासियों ने ही बनायी थी । यदि इस संस्था में शामिल मैनपुरी के ही देशद्रोही गद्दार दलपतसिंह ने अंग्रेजी सरकार को इसकी मुखबिरी न की होती तो यह दल समय से पूर्व इतनी जल्दी टूटने या बिखरने वाला नहीं था। मैनपुरी काण्ड में शामिल दो लोग - मुकुन्दीलाल और राम प्रसाद 'बिस्मिल' आगे चलकर सन् १९२५ के विश्वप्रसिद्ध काकोरी काण्ड में भी शामिल हुए। मुकुन्दीलाल को आजीवन कारावास की सजा हुई जबकि राम प्रसाद 'बिस्मिल' को तो फाँसी ही दे दी गयी क्योंकि वे भी मैनपुरी काण्ड में गेंदालाल दीक्षित को आगरा के किले से छुडाने की योजना बनाने वाले मातृवेदी दल के नेता थे। यदि कहीं ये लोग अपने अभियान में कामयाब हो जाते तो न तो सन् १९२७ में राजेन्द्र लाहिडी व अशफाक उल्ला खाँ सरीखे होनहार नवयुवक फाँसी चढते और न ही चन्द्रशेखर आजाद जैसे नर नाहर तथा गणेशशंकर विद्यार्थी सरीखे प्रखर पत्रकार की सन् १९३१ में जघन्य हत्याएँ हुई होतीं।

आइये आज के दिन हम सब 'बिस्मिल' जी को याद करें उनकी इस नज़्म के साथ :- 


( बिस्मिल के मशहूर उर्दू मुखम्मस ) का काव्यानुवाद जज्वये-शहीद

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,

हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !

अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !

अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को  !

नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !

एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !

सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !

नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?

अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की ११५ वी जयंती पर सभी मैनपुरी वासियों की ओर से उनको शत शत नमन ! 

वन्दे मातरम !!
 
इंकलाब ज़िंदाबाद !!

Monday, April 9, 2012

मिलिये मैनपुरी नगर पालिका के अध्यक्ष पद के युवा उम्मीदवार श्री हृदेश सिंह से

मैनपुरी नगर पालिका के चुनाव होने को है ... ऐसे मे यह चर्चा जोरों पर है कि अब की बार पालिका अध्यक्ष कौन बनेगा ??

आइये आज आपको मिलवाते है एक ऐसे ही उम्मीदवार से जो इस बार के नगर पालिका चुनावो मे अपनी किस्मत आजमाने को पूरी तरह से तैयार है ...  और वो है श्री हृदेश सिंह , ब्यूरो चीफ , हिन्दुस्तान , मैनपुरी |

वैसे हृदेश मैनपुरी नगर की जनता के लिए कोई नया नाम नहीं है ... मैनपुरी के मेदेपुर गाँव में जन्मे पले बड़े हृदेश ने किताबी ज्ञान मैनपुरी,आगरा,गाजियाबाद और दिल्ली में लिया |
दुनियादारी की समझ हुई तो बी ऐ की पढाई के साथ ही दैनिक जागरण मैं ५०० रुपये में नौकरी की जबकि इनका पूरा परिवार प्रसाशनिक सेवा में है | घर में बड़े भाई और पुरा परिवार के प्रसाशनिक सेवा में होने के बाद भी इन्होने प्रसासनिक सेवा की तेयारी करने की बजाये पत्रकारिता करने की ठानी और बरस २००४-५ में  भारतीय जन संचार संसथान नई दिल्ली से डिग्री ली| कुछ समय डीडी न्यूज़ में भी काम किया | देहरादून अमर उजाला में सब-एडिटर बन काम किया,फ़िर बी ऐ जी फिल्म्स,न्यूज़ २४ आदि चैनल्स में भी अनुभव लेते रहे | इन सब के बावजूद हमेशा ही इनको यह लगता रहा कि मेरा असली काम इन जगहों पर नहीं परन्तु कही और है ........................पर कहाँ ???
 
बहुत सोचने पर जवाब मिला मैनपुरी !!!

जिसको भी बताया उसीने मजाक उडाया | पर किसी ने ठीक ही कहा है कि
"रौशनी गर खुदा को हो मंज़ूर , आंधियो में चिराग जलते है ||"

आप मैनपुरी वापस आ गए| मैनपुरी की जनता को जागरूक बनाने के मकसद से
सत्यम न्यूज़ चैनल की शुरुआत की। शुरूआती मुश्किलात के बाद हृदेश और उनका सत्यम न्यूज़ चैनल दिन रात उन्नति के पथ पर बड़ता रहा |

मैनपुरी जैसे पिछडे जनपद में पत्रकारिता के जरिये लोगों को आवाज़ बलन्द करने के लिए
नेशनल जोय्तिबा फूले फेलोशिप अवार्ड मिला साथ - साथ बेस्ट जर्नलिस्ट ऑफ़ दा इयर और बेस्ट यंग जर्नलिस्ट अवार्ड भी मिले| मैनपुरी का नाम पुरे विश्व में रोशन हो यही उनका मकसद है ||

आजकल हृदेश लोकप्रिय हिंदी दैनिक अखबार 'हिन्दुस्तान' के मैनपुरी कार्यालय में 'ब्यूरो चीफ' के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे है | 

 
 आइये मिलते है हृदेश सिंह से ...


·  हृदेश , नमस्कार ... कैसे है आप ?? 

मैं बिलकुल ठीक हूँ ... आप कैसे हैं? 

·  मैं भी बिलकुल ठीक हूँ एक बात बताएं आजकल  शहर मे यह खबर ज़ोरों से फैली हुयी है कि आप मैनपुरी नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करने वाले है ... क्या यह सच है ??? 

जी बिलकुल सच है मुझे यकीं नहीं था कि मैनपुरी की जनता मुझे इतना स्नेह करती है..आप जैसे मित्रो और नगर के काफी गणमान्य लोगों का जबरदस्त दवाब है कि मैं दावेदारी पेश करूँ और जब इतने लोगो को मुझ से इतनी उम्मीद है तो भला मैं कैसे न कह सकता हूँ !
·  

·  सब से पहले तो हमारी शुभकामनायें लीजिये अपने इस निर्णय के लिए ... फिर ज़रा यह बताएं कि अचानक पत्रकारिता छोड़ राजनीति में  आने का कैसे सुझा आपको ? 

पत्रकारिता को छोड़ने कभी सवाल ही नहीं उठता.में आखरी साँस तक पत्रकारिता करना चाहता हूँ. जनता की सेवा हमेशा की है और आगे भी करनी है  .इसलिए प्रभावी और सीधा मध्याम तलाश कर रहा हूँ ..देखिये किस हद तक सफल होता हूँ !.

·  आपको लगता है मैनपुरी शहर की जनता आप जैसे किसी युवा उम्मीदवार पर इतना भरोसा कर पाएगी ? 

क्यों नहीं ... पूरा देश में देख लीजिये माहौल युवाओ का ही है जगह जगह बदलाव हो रहा है. और युवा बदलाव के सबसे बड़े समर्थक होते  हैं. युवाओं ने अपनी प्रतिभा से यह साबित किया है कि जरुरत पड़ने पर वो राजनीती भी कर सकते हैं ... युवाओ को पीछे रख कर कोई भी देश या समाज तरक्की नहीं कर सकता !


·  मैनपुरी को ले कर आपके मन मे क्या विचार है विस्तार से बताएं ? 

हर मैनपुरी वासी की तरह मैं भी मैनपुरी को विकसित होते देखना चाहता हूँ.यहाँ सब कुछ है..सबसे बड़ी बात लोगों मैं जूनून है कुछ बेहतर करने का.जरुरत है उन्हें मौका देना की.यहाँ आदर्श माहौल तैयार करने की जरुरत है ताकि लोगों का हर स्तर पर विकास हो सके.

·  आपके हिसाब से मैनपुरी शहर की सब से बड़ी समस्या क्या है और उसको कैसे दूर किया जा सकता है ?
 
बिजली पानी सड़क तो मेन दिक्कत है ही.इसके अलावा अतिक्रमण.
संकरी सड़कें और नालियां भी बड़ी समस्यां है.गंदगी के लिए भी अधिक काम करने की जरुरत है. जनता में इन समस्याओ के प्रति जागरूकता काफी हद तक समस्या को हल कर देगी ... क्यों कि सच कहें तो यह सब समस्या हमारी खुद की खड़ी की हुयी है !

·  चुनाव के लिए क्या प्लानिंग है आपकी ? 

ये शहर मेरा है मुझे इसकी खामियां और खूबियाँ बखुब पता है इस लिए कोई खास प्लानिग की जरुरत नहीं है.बस हर एक से मुलाकात  हो.लोग मुझे समझ सकें.हर बंदा दिल से मुझे चुने यही कोशिश  है ... कोई दबाव या मजबूरी नहीं !

·  आपकी चुनावी रणनीति मे जातिगत समीकरण कितना महत्व रखते है ?
 
किसी भी तरह का चुनाव हो जातपात से ऊपर उठ कर देखना चाहिए.इस सोच से विकास पर असर पडता है.मेरा यही मनाना है कि सब चुने और सही चुने.

·  आजकल नेताओ की छवि कुछ अच्छी नहीं ... ऐसे मे आप ऐसा क्या अलग करेंगे की जनता की निगाह मे आपकी छवि न बिगड़े ? 

छवि आपके गुणों से बनती है.गुण ज्ञान.संस्कार से आते है.अगर आप में ये हैं तो जनता की नज़र मे आपकी छवि ठीक होगी और मुझे गर्व है कि मेरे संस्कार और गुण विरासत में मिले है ... मैनपुरी में शायद ही कोई मेरी या मेरे परिवार की छवि पर कोई उंगली उठाये ... हम लोग जमीनी लोग है साहब !


·  अक्सर लोग नेता बनने के बाद आम जनता की पहुँच से दूर हो जाते है ... बुरा न मानिएगा पर क्या आपका भी यही हाल होगा ? 

भाई आप से किसने कह दिया कि मैं नेता बनना चाहता हूँ मैं ऐसा कोई सपना नहीं देखा रहा ... मैं शुरू से ही जनता के साथ रहा हूँ और आगे भी रहूँगा जनता से दूर रह कर कभी भी जनता कि भलाई नहीं की जा सकती जहाँ मामला जनहित का हो आज भी मैं २४ घंटे उपलब्ध हूँ और आगे भी रहूँगा !


·  आप खुद युवा है तो जाहिर है आपको युवाओ से काफी उम्मीद भी होगी इस चुनाव मे ... और उनको आपसे ... कुछ कहना चाहेंगे उनसे ? 

मैनपुरी का युवा अब किसी से पीछे नहीं है.नई सोच के साथ युवा आगे बढ़ रहा है.उनका सही मार्ग दर्शन उन्हें बेहतर माहौल देना प्राथमिकता में शामिल है मेरे सिर्फ इतना कहना है उनसे कि हम सब को साथ काम करना है और बहुत काम करना है ताकि अपने मैनपुरी को सच में एक आदर्श जनपद बना सकें !


·  अगर एक उम्मीदवार के तौर पर देखा जाये तो 10 मे से कितने नंबर देंगे आप खुद को ... और क्यों ?

 कठिन सवाल है ये...फिर भी मैं अपने आप को दस नम्बर देना चाहूँगा ... क्यों कि मेरी नियत में कोई खोट नहीं है ... मेरा मकसद सिर्फ मैनपुरी की जनता की सेवा करना है !


·  चलिये हमने माना आप जीत गए ... कुछ बताए अपने प्लान के बारे मे जो आपने सोचा हो आप करना चाहेंगे अपने मैनपुरी शहर के लिए 

मैनपुरी शहर को देश का पहला वाई फाई और हाई फाई शहर के रूप में विकसित करना चाहता हूँ.अगर आप सभी का सहयोग और आशीर्वाद मिला तो ... जानता हूँ बहुत आगे की सोच रहा हूँ पर यह भी सत्य है बिना कोशिश किये कभी भी कामयाबी नहीं मिलती ... अगर हम सब साथ कोशिश करें तो यह सपना भी सच होगा ... इंशाल्लाह !
 
बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो आपने इतनी व्यस्तता के बाद भी मुझे समय दिया ... उम्मीद है आपका अगला इंटरव्‍यू जब मैं लूँगा तब आप को मैनपुरी नगर पालिका अध्यक्ष के रूप में ही संबोधित करूँगा ... मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है !
 
धन्यवाद शिवम् जी ... बहुत बहुत आभार आपका ! 

Wednesday, February 22, 2012

मैनपुरी के मतदाताओ से अपील

आज कल मैनपुरी जनपद में भी उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों की तरह चुनावी माहौल चल रहा है ... आप में से भी बहुतो ने पहले भी अपने अपने मतदाता होने के अधिकारों का उपयोग किया होगा और बहुत से शायद पहली बार ऐसा करने वाले होगें !

ऐसा में सवाल यह उठता है कि मान लीजिये जब आप वोट करने जाए और देखें कि प्रत्याशियों की सूचि में एक भी ऐसा प्रत्याशी नहीं है जो आपकी आशाओं पर खरा उतरे तो क्या करेंगे आप ... ??

वैसे अगर आप नीचे दिए जा रहे कारणों से वोट देते है ... तो ऊपर वाले सवाल पर ध्यान न दें ...

" क्या फर्क पड़ता है यार किसी को भी वोट दे कर अपना काम खत्म करो "  यह सोच किसी भी एक को अपना वोट दे देंगे !?

आपका परिवार सालों से एक ही पार्टी विशेष को वोट देता आया है इस लिए आप भी उसी पार्टी को वोट देंगे ... प्रत्याशी से आपको कोई मतलब नहीं !?

प्रत्याशी आपका परिचित है ... अब भले ही वो किसी भी पार्टी में हो ... अपने काम करें न करें ... आपको फर्क नहीं पड़ता !?

प्रत्याशी आपकी ही जाति / धर्म का है ... अब ऐसे में किसी और को वोट देने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है !?  

पर अगर आप एक जागरूक मतदाता है और अपने वोट की कीमत जानते है तो नीचे दिए जा रहे चित्र को ध्यान से देखें और अगर जरुरत पड़े तो अपने अधिकार का उपयोग करते हुए एक सच्चे मतदाता होने का फ़र्ज़ निभाएं !
 
(चित्र पर क्लिक कर बड़ा करें) 
आप सब से अपील है कि कल यानी २३ फरवरी २०१२ को अपने अपने मतदान केन्द्रों में जाएँ और मैनपुरी जनपद के हितो को ध्यान में रखते हुए सही  प्रत्याशी को अपना वोट दें !


जय हिंद !!!

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