Tuesday, July 15, 2014

प्रभाष जोशी जी की जयंती पर विशेष …

आज हिन्दी पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक स्व॰ श्री प्रभाष जोशी जी की ७८ वीं जयंती है ...

इस मौके पर प्रस्तुत है एक विशेष पोस्ट जिस मे मैनपुरी नगर मे हिन्दी दैनिक अखबार हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ, श्री हृदेश सिंह जी स्व॰जोशी जी से हुई अपनी एक मुलाक़ात के बारे मे बता रहे है |
===============================================
आदरणीय प्रभाष जोशी जी से मेरी मुलाक़ात भारतीय जनसंचार संस्थान में हुई थी..... तारीख थी.. 25 अगस्त 2004. उस समय इस संस्थान से हिंदी पत्रकारिता की पढाई कर रहा था..... उनके बारे में बहुत कुछ सुना था..... पढ़ा था … सो उन से मिलने को मैं बेताब था.....प्रो.आनंद प्रधान के साथ कलफ लगे सफ़ेद कुर्ते और धोती में उनका दाख़िल होना हम लोगो के लिए किसी हीरो की एंट्री से कम न था .
 
उनके क्लास में दाखिल होने और कुर्सी पर बैठने तक मैं एक तिलिस्म में कैद हो चूका था.… उनके चेहरे पर गज़ब का आत्मविश्वास था.…एक सम्मोहन था..… क्लास शुरू हुई.… पहली बात चुनाव को लेकर हुई.… देश का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ.…प्रभाष जी ने बताया कि उसमें वे शामिल रहे थे ... किसी रिश्तेदार के लिए प्रचार किया था.…प्रभाष जी उन पत्रकारों में थे जिन्होंने पहले चुनाव से लेकर 14 वी लोकसभा तक के चुनाव देखे थे.... प्रभाष जी ने 1956 के आसपास पत्रकारिता की शुरुआत की.….उनकी कलम सच की स्याही से भरी थी.…मेरी नज़र में वह खालिस हिंदुस्तानी पत्रकार हैं..... उनका कहना था कि ''असली पत्रकार वही है जो जन पांडे (एक खास विधि से जमीन में पानी के श्रोत को तलाश करने वाला शख़्स ) की तरह जमीन पर हाथ रखकर चीजों की पहचान कर सके |" 

क़र्ज़ और भुखमरी से मरने वाले किसानों को लेकर उन मे बेहद दर्द था.....मीडिया में कार्पोरेट के दखल से होने वाले नुकसानों को सबसे पहले प्रभाष जी ने ही जनता के सामने रखा था.....
प्रभाष जी मानते थे कि''पत्रकार को स्वतंत्र बुद्धि विवेक को त्यागना नहीं चाहिए ... फिर परिस्थिति चाहे कुछ भी हो , एक पत्रकार को यही जीवित रखती है |"  

प्रभाष जी ने मुझ से कहा था कि ''पत्रकार को अपना विष सम्हाल कर रखना चाहिए |" .इस पर उन्होंने दिनकर की 'शक्ति और क्षमा" शीर्षक वाली कविता की कुछ पंक्तियाँ सुनाई जो मुझे आज भी याद है ... 

"क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।"

वे नए पत्रकारों को वे सदा आगे बढाते थे.खबर से लेकर सम्पादकीय तक को किस तरह से लिखना चाहिए इस पर उनके पास अनुभवों का खजाना था.प्रभाष जी का कहना था कि''सम्पादकीय लिखते समय पाठक को माई बाप मानकर चलना चाहिए..... उनकी एक और बात जो में कभी नहीं भूल सकता कि ''इरादों में कभी खोट नहीं देखनी चाहिए.......गाँधी जी भी यही कहते थे |"

आज उनकी जयंती के अवसर पर मैं उन्हें शत शत नमन करता हूँ और यह प्रण करता हूँ कि एक पत्रकार के रूप मे आजीवन उनके सिखाये आदर्शों का पलान करता रहूँगा |

- हृदेश सिंह
मैनपुरी ब्यूरो चीफ़,
हिंदुस्तान

  © Blogger template 'A Click Apart' by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP