आजादी की पहली जंग में खून से लाल हुई थी मैनपुरी की माटी
मैनपुरी जिले का इतिहास वीर गाथाओं से भरा
पड़ा है। यहां की माटी में जन्मे लाल हमेशा गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के
लिए हर सम्भव कोशिश करते रहे। ब्रिटिश राज में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान
यहां की माटी वीर सपूतों के खून से लाल हुई है। पृथ्वीराज चौहान के बाद
उनके वंश के वीर देशभर में बिखर गए। उन्हीं में से एक वीर देवब्रह्मा ने
1193 ई. में मैनपुरी में सर्वप्रथम चौहान वंश की स्थापना की। 1857 में जब
स्वतंत्रता आंदोलन की आग धधकी तो महाराजा तेजसिंह की अगुवाई में मैनपुरी
में भी क्रांति का बिगुल फूंक दिया गया। तेज सिंह वीरता से लड़े। और
अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। घर के भेदी की वजह से उन्हें भले ही
अंग्रेजों को खदेड़ने में सफलता न मिली हो लेकिन इसमें उनके योगदान को
भुलाया नहीं जा सकता। तेजसिंह ने जीवन भर मैनपुरी की धाक पूरी दुनिया में
जमाए रखी।
इतिहास गवाह है कि 10 मई 1857 को
मेरठ से स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत हुई, जिसकी आग की लपटें मैनपुरी भी
पहुंची। इस आंदोलन से पांच साल पहले ही महाराजा तेजसिंह को मैनपुरी की
सत्ता हासिल हुई थी। उन्हें जैसे-जैसे अंग्रेजों के जुल्म की कहानी सुनने
को मिली, उनकी रगों में दौड़ रहा खून अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने
के लिए खौल उठा और 30 जून 1857 को अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध तेजसिंह ने
आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने मैनपुरी के स्वतंत्र राज्य की घोषणा
करते हुए ऐलान कर दिया। फिर क्या था राजा के ऐलान ने आग में घी का काम किया
और उसी दिन तेजसिंह की अगुवाई में दर्जनों अंग्रेज अधिकारी मौत के घाट
उतार दिए गए। सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेजों की सम्पत्ति पर तेजसिंह
की सेना ने कब्जा कर लिया। तेजसिंह ने तत्कालीन जिलाधिकारी पावर को प्राण
की भीख मांगने पर छोड़ दिया और मैनपुरी तेजसिंह की अगुवाई में
क्रांतिकारियों की कर्मस्थली बन गयी। मगर स्वतंत्र राज्य अंग्रेजों को
बर्दाश्त नहीं था। फलस्वरूप 27 दिसम्बर 1857 को अंग्रेजों ने मैनपुरी पर
हमला बोल दिया। इस युद्ध में तेजसिंह के 250 सैनिक भारत माता की चरणों में
अर्पित हो गए। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में तेजसिंह की भूमिका ने
क्रांतिकारियों को एक जज्बा प्रदान कर दिया। हालांकि उनके चाचा राव भवानी
सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध तेजसिंह का साथ नहीं दिया। फलस्वरूप
तेजसिंह अंग्रेजों से लड़ते हुए गिरफ्तार हो गए और अंग्रेजों ने उन्हें
बनारस जेल भेज दिया। इसके बाद भवानी सिंह को मैनपुरी का राजा बना दिया गया।
1897 में बनारस जेल में ही तेजसिंह की मौत हो गयी।
मैनपुरी के इस क्रांतिकारी राजा को उनकी प्रजा का शत शत नमन |